फलसफा ज़िन्दगी का कुछ समझ नहीं आता, यहाँ गैर फ़रिश्ते औऱ अपने दुश्मन क्यों बन जाते है |
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विक्षुब्ध ह्रदय संताप प्रभा का बयां करू या कष्ट फूलो का स्फुटित करू | है कालचक्र का ये कैसा पग घनघोर प्रलय को कैसे कहूँ | उदीप्त रह...