शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

जिंदगी टूटकर नहीं मुस्कुरा के जिंदगी टूटकर नहीं मुस्कुरा के जीना चाहिए
खुदा की मर्जी को भी अपना के जीना चाहिए
कोई खुश नहीं हैं यहां कांटो की विसात पर
हर वजूद धधक रहा हैं दुखो की आंच पर
कोई कुछ पाकर भी रोता हैं
तो कोई कुछ पाने के लिए रोता हैं
हर एक चीज ढकी हैं यहाँ आंसुओ से
बस कोई भीगकर भी मुस्कुराता हैं
तो कोई मुस्कुराने के लिए भीग जाना चाहता हैं
अजीब उल्फत होती हैं जिंदगी की
कि गम हो या खुशियां दोनों में
आखिर आंसू ही बहाना होता हैं |

बुधवार, 11 अप्रैल 2018

छूट जाना हैं, टूट जाना हैं |
फिर भी जिंदगी को जीते जाना हैं ||

लम्हे जो छूटे हैं लम्हें मिलेंगे जो |
इन लम्हो पे कहानी लिख जाना हैं ||

रूठ जाना हैं .............................||

आँखों में नमी होगी हर पल तेरी कमीं होगी |
फिर भी यहाँ बस मुस्कुराना हैं ||

राह कठिन होगी मंजिले रुसवा होंगी |
फिर भी चलते जाना हैं ||

सोमवार, 2 अप्रैल 2018

ये भी एक तरह का नैतिक पत्रकारिता का भ्रष्टाचार ही है .रचनाओं  को मौका उनकी क्वालिटी योग्यता के आधार पर मिलना चाहिए ये क्या हैं की उसने धन्यवाद नहीं दिया इसने ये नहीं दिया .समाज के सामने ऐसे ही  लेखन परोसे जाने चाहिए जिनसे धन्यवाद मिले ना मिले पर हमारा और समाज का मस्तक उस रचना को नमन करने को मजबूर हो जाए .रही बात सम्मान की तो सम्मान मिलना बड़े ही फक्र की बात हैं लेकिन इसकी चाहत की महत्त्वाकांक्षा इन्शान का पतन कर  देती हैं रावण हिरण्यकश्यप जैसे महाबली भी इन्शान से भगवान् बनने के चक्कर में पतित हो गए .सम्मान की अगर भूख बढ़ जाए तो राक्षस बनने में देर नहीं लगाती और सम्मान  इन्शान को भी बेशक भगवान् बना देता हैं पर जब वह जबरदस्ती और उधारी का ना हो .और एक पत्रकार लेखक कवी ये सब बुद्धिजीवियों की श्रेणी में आतें हैं जो समाज के आधार हैं ये अनमोल हैं और अगर यही हीरे स्वयं अपनी कीमत का निर्धारण करके बाजार में बैठ जाएंगे तो  दुनिया में अनमोल वस्तु कहाँ बचेगी....सभी लेखक भाईयो से गुजारिश हैं आज संस्कारविहीन समाज और अपाहिज होते देश की करुण ब्यथा सब को पता हैं बस हम इसके दर्द को शब्दों का रूप दे और मानवीय चेतना को फिर से प्रज्ज्वलित करें और इसके लिए हमें हर जगह और हर स्थिति में खुद को नैतिक रखना पड़ेगा  | कोई धन्यवाद दे ना दे ये उसके अपने संस्कार हैं किन्तु अगर उसकी रचना ऐसी हैं जो कई मरे दिलो को ज़िंदा कर सकती हैं तो ये हमारा नैतिक कर्तव्य हैं कि उसे नहीं पर उसकी रचना को मौका दे| क्योंकि ये हमारा संस्कार हैं | ये मेरे अपने विचार हैं मैं इन बातों को किसी पर थोप नहीं रहा और ना ही दबाव बना रहा हूँ |किसी तरह से दिल में चोट लगी हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ  किन्तु चोट से ही दर्द और दर्द से दिल और दिल से जिन्दापन आता हैं | सभी को साधुवाद |