विक्षुब्ध ह्रदय
संताप प्रभा का बयां करू
या कष्ट फूलो का स्फुटित करू |
है कालचक्र का ये कैसा पग
घनघोर प्रलय को कैसे कहूँ |
उदीप्त रहता ह्रदय में रश्मि प्रभा
पर कालिमा अब वहां की कैसे कहूँ |
चांडाल हुआ हर मानव है
व्यथा ह्रदय की कैसे कहूँ |
सद्ग्रन्थ कुंठित हैं कुकर्म भावो से
वेदना उनकी वर्णित कैसे करू |
जगत तिमिर ने ढक लिया
अंध दृष्टि को रोशन कैसे करू|
पाप हो उठा प्रज्ज्वलित
धधकती धरती की व्यथा कैसे कहूँ |
चेतना मानव की सो रही है
उसे चलने को अब कैसे कहूँ ||
मर रहा हर प्राणी
जीवन की लौ कैसे भरूँ |
सत्कार जीवन का करना चाहूँ
पर मृत्यु को दूर कैसे रखूँ |
बता दे कोई पथ मुझको हे पथदृष्टा
निर्माण प्रकाश का फिर कैसे करू |
कर दे सबल निज अंतर्मन को हे ईश्वर
पाप धरा से मिटा सकूं |
अंध भगा कर जगत से मैं
ज्योति सचेतन जला सकूं ||
प्रार्थना परिणित कर दे मेरी आत्मबल से
कुकृत्यों से युद्ध कर सकूं |
हटा कर बोझ कुकर्मो का
सुकर्मी जीवन बना सकूं ||
यही निज इच्छा पनप उठी है
संस्कार धारा का खिला सकूं
अंततः आकर फिर तेरी शरण में
निर्भीक स्वरों से स्वकर्मो को बता सकूं |
ओम तत्सत ||अमरेंद्र||
संताप प्रभा का बयां करू
या कष्ट फूलो का स्फुटित करू |
है कालचक्र का ये कैसा पग
घनघोर प्रलय को कैसे कहूँ |
उदीप्त रहता ह्रदय में रश्मि प्रभा
पर कालिमा अब वहां की कैसे कहूँ |
चांडाल हुआ हर मानव है
व्यथा ह्रदय की कैसे कहूँ |
सद्ग्रन्थ कुंठित हैं कुकर्म भावो से
वेदना उनकी वर्णित कैसे करू |
जगत तिमिर ने ढक लिया
अंध दृष्टि को रोशन कैसे करू|
पाप हो उठा प्रज्ज्वलित
धधकती धरती की व्यथा कैसे कहूँ |
चेतना मानव की सो रही है
उसे चलने को अब कैसे कहूँ ||
मर रहा हर प्राणी
जीवन की लौ कैसे भरूँ |
सत्कार जीवन का करना चाहूँ
पर मृत्यु को दूर कैसे रखूँ |
बता दे कोई पथ मुझको हे पथदृष्टा
निर्माण प्रकाश का फिर कैसे करू |
कर दे सबल निज अंतर्मन को हे ईश्वर
पाप धरा से मिटा सकूं |
अंध भगा कर जगत से मैं
ज्योति सचेतन जला सकूं ||
प्रार्थना परिणित कर दे मेरी आत्मबल से
कुकृत्यों से युद्ध कर सकूं |
हटा कर बोझ कुकर्मो का
सुकर्मी जीवन बना सकूं ||
यही निज इच्छा पनप उठी है
संस्कार धारा का खिला सकूं
अंततः आकर फिर तेरी शरण में
निर्भीक स्वरों से स्वकर्मो को बता सकूं |
ओम तत्सत ||अमरेंद्र||
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 09 जनवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजी आपका कॉमेंट मैं आज पढ़ रहा हूं । आभार ।।
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी
हटाएंसुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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