शनिवार, 28 अक्टूबर 2017

एक टूटा हुआ आशिक जो जिन्दा तो है पर अब जिंदगी नहीं है

रूखी पलकों से अब इन्तजार किसका करू|
तू खो गयी अब ऐतबार किसका करूँ ||
साँसे ही ना हो जब सीने में |
तो जिंदगी की चाह कैसे करूँ ||

टूटा हुआ फूल हूँ महेक मेरी बिखर गयी |
तुझसे अलग क्या हुआ पहचान ही मेरी खो गयी |
रौनक हूँ बस अब दुनिया की श्रन्गारो का |
अल्फाज बन गया हूँ मसलते हाथो की जुबानो का ||

तड़पकर इस दर्द को अब किससे कहूँ |
होकर तुझसे जुदा अब जिंदगी को जिन्दा कैसे रखूँ  ||

अलविदा

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