शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

जिंदगी टूटकर नहीं मुस्कुरा के जिंदगी टूटकर नहीं मुस्कुरा के जीना चाहिए
खुदा की मर्जी को भी अपना के जीना चाहिए
कोई खुश नहीं हैं यहां कांटो की विसात पर
हर वजूद धधक रहा हैं दुखो की आंच पर
कोई कुछ पाकर भी रोता हैं
तो कोई कुछ पाने के लिए रोता हैं
हर एक चीज ढकी हैं यहाँ आंसुओ से
बस कोई भीगकर भी मुस्कुराता हैं
तो कोई मुस्कुराने के लिए भीग जाना चाहता हैं
अजीब उल्फत होती हैं जिंदगी की
कि गम हो या खुशियां दोनों में
आखिर आंसू ही बहाना होता हैं |

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