शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

2.5 करोड़ सरकारी नौकर और इससे भी ज्यादा निजी संस्थाओ के नौकर और आने वाली पीढ़ी और नौजवानो का सपना बस नौकर नौकर. सवाल बस यही क्या नौकर कभी मालिक की बराबरी कर सकता हैं नहीं तो फिर देश की आर्थिक असमानता को दूर करने की बातें क्यों होती हैं | क्यूँ हम छोटे से मकान को हवेली में तब्दील करने का खाब बुनते हैं क्यूँ हम अपनी छोटी सी जिंदगी को बीएमडब्लू में सवार होना देखते हैं हमको पता होना चाहिए कि नौकरी इन्शान को जिन्दा मशीन और जानवर जिसमे कुछ सोचने की ताकत ना हो से ज्यादा कुछ नहीं बना सकती अंग्रेजो की देन ये कम्पनिया सिर्फ इन्शानो की जिंदगियां निगलती हैं | उद्योगपति जो इन्शानो के साथ साथ सरकारों को भी खरीदतीं हैं और स्वनिर्मित कानूनों और नियम बनाकर स्वैच्छाओं के लिए शोषण का कारखाना चलाते हैं |नए भारत की बस यही सच्चाई हैं की युवाबल बलहीन होकर बैशाखी की तलाश में रहते हैं कि हम भी खड़े हो जाएँ पर ये खड़े होने की कीमत क्या चूका रहे हैं ये भविष्य का भारत बताएगा क्योंकि कम्पनिया सिर्फ युवा बल को ही नहीं खत्म कर रही हैं बल्कि ये पहले हमको नौकर बनाते हैं बचपन से जो सीखे हो गलत के खिलाफ खड़े हो जाओ उस भावना को खत्म करती हैं जो भाई नौकरी कर रहे हैं उनको पता होगा आपके साथ डिपार्टमेंट के अंदर ही कितनी पोलटिक्स खेली जाती हैं दोस्त दोस्त में ही कम्पटीशन हो जाता हैं आगे निकलने की चाहत में जो गन्दी राजनीति नेतावो में भी नहीं होगी वो राजनीति का जन्म यहाँ हो जाता एक दोस्त अपनी महत्त्वकांछाओ की पूर्ती के लिए चाटुकारिता से समझौता करता हैं यही से जन्म होता है उस जानवर का जो जानवर को भी इन्शानो कि श्रेणी से ऊपर रखता हैं और तभी ये कहावत चरिर्तार्थ होती हैं कि कुत्ता पाल लो पर इंसान नहीं | फिर हां में हाँ मिलाने वाले नौकरो की तररकी और अपनी शिक्षा संस्कार स्वाभिमान लिए नौजवान इस कंपनी से उस कंपनी धक्के खाता घूमता हैं कभी यहां से निकाला जाता कभी वहां से ये कहकर कि काम तो अच्छा करता हैं पर इसका ऐटिटूड सही नहीं हैं वो ज्यादा जरूरी हैं अर्थात इनको ऐसे बन्दों की जरूरत होती हैं जो कैसा भी हो पर उसमे वो अपना वजूद पूरी तरह से गुलाम रख सके | फिर जो सच्चा गुलाम होता हैं ऐसा ब्यक्ति जो इनके कहने पर किसी का भी खून पी सकता हो अपने साथी इम्प्लॉई अपने माँ बाप अपनी बीबी अपने बेटे की वो इनका खासम खाश अर्थात मैनेजर होता हैं | फिर इन कम्पनी वालो के द्वारा डोज देकर तैयार किया गया मैनेजर रुपी जानवर फिर चालू करता हैं | अन्य एम्प्लाइज का शोषण ये भूलने वाली बात नहीं हैं साथ साथ उसका परिवार माँ बाप बीबी व बच्चे भी शोषित होते हैं और इस शोषण के कारखाने जो ज्यादा उछल कूद करते हैं वो पहले ही बाहर का रास्ता दिखा दिए जाते हैं पर कुछ बीच वाले होते है कभी नाराज होते हैं तो वो फिर बहला फुसला लिए जाते हैं वो एम्प्लोयी कुछ उनसे थोड़ा ऊपर वाले होते हैं और कुछ होते जो गलत भी नहीं होते सही भी नहीं होते वो जब से लगा दिए जाते हैं तब से एक ही काम पकडे रहकर अपनी जिंदगी बिता देते हैं ये लोग काफी पुराने हो जाने के बाद भी अपना हक़ नहीं रख पाते असल में इनमे ज्यादा सोचने कर गुजरने की क्षमता ही नहीं होती | अभी ये कुछ भी नहीं फिर एक साधारण एम्प्लोयी में भी ललक जगती हैं इन बड़े स्टेटस वाले लोगो का जीवन देखकर और वो भी अपने 15000 की सैलरी में कपडे खरीदता हैं शॉपिंग मॉल से कंपनी के अंदर ऐसी संस्कृति पनपती हैं जो विदेशी नंगेपन बालीबुड के नेहा कक्कर, बादशाह,यो यो  कि लोकप्रियता बढ़ाती हैं स्मार्ट फ़ोन में लड़की आँख मारे धुन गूंजती रहती हैं गांव घर की साड़ी शिक्षा संस्कार इस आँख मारे में समाहित हो जाती हैं और कुछ मोटी सैलरी वालो का किस्तों में अपना एक फ्लैट एक ऐसी ही कर्ज में डूबी गाडी और अपनी चमचमाती पर गिरवी रखी एक जिंदगी होती हैं इन्शुरन्स हेल्थ प्लान लाइफ प्लान फिर भी हॉस्पिटल चूस पूरा लेता हैं इन सबके अलावा वीकेंड हप्तो में कभी कभार कंपनी से शायद हट के देख पाते हैं फिर वाही जिंदगी चालू और कुछ ऊब भी गए तो चाहकर भी नौकरी से मुक्ति नहीं पाते क्योंकि नौकरी छोड़ देंगे तो फिर ये फ्लैट की क़िस्त गाडी की क़िस्त बच्चे की फीस कौन भरेगा ये नहीं हुवा तो साधारण एम्प्लोयी जो 10 हजार बचाकर घर भेज देतें हैं वो कैसे होगा | इन्शान कुल मिलाके वो पतंगा होता हैं जो कंपनी के मकड़जाल में ऐसे फंसता हैं कि निकलना मुमकिन नहीं हो पाता ये कम्पनिया जवानी खत्म कर रही हैं संस्कृति खत्म कर रही हैं पूरे भारत जा सत्यानाश कर रही हैं शर्म जो किसी औरत का गहना माना जाता रहा हैं उसको बेशर्मी की खाल पहना दिए हैं नारी सशक्तिकरण की बाते कहकर नारी को पतित कर दिए हैं दोस्तों ये कम्पनी के जिंदगी की बहोत छोटी सी बातें हैं कंपनी ये 15, 25, 35, 50 हजार देकर हमारा क्या नाश कर रही हैं ये आप नहीं समझोगे लेकिन ये याद रखना वो दिन भी आने वाला हैं जब ये नंगे अंग्रेज ही एक दिन बोलेंगे कि इन नंगे  भारतीयो में संस्कार नाम की चीज नहीं हैं और आपका बेटा नाती या पनाती ये नहीं समझ पायेगा कि ये संस्कार होता क्या हैं वो ये नहीं समझ पायेगा कि गर्लफ्रेंड के अलावा भी भारत में रिस्तें होते थे वो ये तक नहीं समझ पायेगा कि बहन भाई का कितना पवित्र रिस्ता होता हैं और इसके सीधे से जिम्मेदार हम होंगे ना की वो |

मंगलवार, 8 जनवरी 2019

इतिहास के पन्ने पलटा तो बस यही मिला जिंदगी सबसे जीतकर अपनों से हार जाती हैं | 

बुधवार, 7 नवंबर 2018

ज्योति जले सचेतन की
हर काया में श्री राम बसें |
हो प्रभात हर जीवन का
उत्साह बृद्धि अपार बढे ||

हर भरत आज मिलाप करे
हर उर्मिल का श्रृंगार सजे |
अखंड भारत की सुरमयी ध्वनि से
सुरमय होकर ब्रम्भाण्ड बढे ||

हर बहना के जीवन  पर
भाई का स्नेह बढे |
मात पिता के अनुरागी चरणों पर
आज हर बेटे का शीश झुके ||

कोई रुदन अब ना होने पाये
कोई अंधियारी में ना खोने पाये
रौशन हो जाए मन इतना कि
कोई पाप जीवन को ना छूने पाये ||

दृष्टांत जीवन का निर्मित हो ऐसा
कोई प्रभुता मदता में ना खोने पाये |
जड़कर अहंकार के गहनों से
कोई मानव दानव ना होने पाये ||

बस हर पुरुष सद् गामी हो
हर नारी में सतीत्व उदय हो |
कोई कुपथ ना खींच सके पैरो को
हर दिल इतना स्वाभिमानी हो ||

सबल बने सबका अंतर्मन
दिब्य ओज प्रकाश बहे |
आज धरा पर हे ईश्वर
तेरी अनुकम्पा बनी रहे |

मिटे प्रदूषण धरती से
हर जीवन में संस्कार खिले |
आच्छादित हो सद्बुद्धि सभी में 
तरलता जीवन की बनी रहे

राम आगमन पे झूम उठे फिर से दुनिया
हर गली आज हर घर द्वार सजें |
इस बार दिवाली में ऐ विधाता
हर प्राणी का भाग्य जगे ||

||जय श्री राम|| आपको मेरी तरफ से दिवाली की ढेर सारी शुभकामनाएं | ||अमरेंद्र||

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

जिंदगी टूटकर नहीं मुस्कुरा के जिंदगी टूटकर नहीं मुस्कुरा के जीना चाहिए
खुदा की मर्जी को भी अपना के जीना चाहिए
कोई खुश नहीं हैं यहां कांटो की विसात पर
हर वजूद धधक रहा हैं दुखो की आंच पर
कोई कुछ पाकर भी रोता हैं
तो कोई कुछ पाने के लिए रोता हैं
हर एक चीज ढकी हैं यहाँ आंसुओ से
बस कोई भीगकर भी मुस्कुराता हैं
तो कोई मुस्कुराने के लिए भीग जाना चाहता हैं
अजीब उल्फत होती हैं जिंदगी की
कि गम हो या खुशियां दोनों में
आखिर आंसू ही बहाना होता हैं |

बुधवार, 11 अप्रैल 2018

छूट जाना हैं, टूट जाना हैं |
फिर भी जिंदगी को जीते जाना हैं ||

लम्हे जो छूटे हैं लम्हें मिलेंगे जो |
इन लम्हो पे कहानी लिख जाना हैं ||

रूठ जाना हैं .............................||

आँखों में नमी होगी हर पल तेरी कमीं होगी |
फिर भी यहाँ बस मुस्कुराना हैं ||

राह कठिन होगी मंजिले रुसवा होंगी |
फिर भी चलते जाना हैं ||

सोमवार, 2 अप्रैल 2018

ये भी एक तरह का नैतिक पत्रकारिता का भ्रष्टाचार ही है .रचनाओं  को मौका उनकी क्वालिटी योग्यता के आधार पर मिलना चाहिए ये क्या हैं की उसने धन्यवाद नहीं दिया इसने ये नहीं दिया .समाज के सामने ऐसे ही  लेखन परोसे जाने चाहिए जिनसे धन्यवाद मिले ना मिले पर हमारा और समाज का मस्तक उस रचना को नमन करने को मजबूर हो जाए .रही बात सम्मान की तो सम्मान मिलना बड़े ही फक्र की बात हैं लेकिन इसकी चाहत की महत्त्वाकांक्षा इन्शान का पतन कर  देती हैं रावण हिरण्यकश्यप जैसे महाबली भी इन्शान से भगवान् बनने के चक्कर में पतित हो गए .सम्मान की अगर भूख बढ़ जाए तो राक्षस बनने में देर नहीं लगाती और सम्मान  इन्शान को भी बेशक भगवान् बना देता हैं पर जब वह जबरदस्ती और उधारी का ना हो .और एक पत्रकार लेखक कवी ये सब बुद्धिजीवियों की श्रेणी में आतें हैं जो समाज के आधार हैं ये अनमोल हैं और अगर यही हीरे स्वयं अपनी कीमत का निर्धारण करके बाजार में बैठ जाएंगे तो  दुनिया में अनमोल वस्तु कहाँ बचेगी....सभी लेखक भाईयो से गुजारिश हैं आज संस्कारविहीन समाज और अपाहिज होते देश की करुण ब्यथा सब को पता हैं बस हम इसके दर्द को शब्दों का रूप दे और मानवीय चेतना को फिर से प्रज्ज्वलित करें और इसके लिए हमें हर जगह और हर स्थिति में खुद को नैतिक रखना पड़ेगा  | कोई धन्यवाद दे ना दे ये उसके अपने संस्कार हैं किन्तु अगर उसकी रचना ऐसी हैं जो कई मरे दिलो को ज़िंदा कर सकती हैं तो ये हमारा नैतिक कर्तव्य हैं कि उसे नहीं पर उसकी रचना को मौका दे| क्योंकि ये हमारा संस्कार हैं | ये मेरे अपने विचार हैं मैं इन बातों को किसी पर थोप नहीं रहा और ना ही दबाव बना रहा हूँ |किसी तरह से दिल में चोट लगी हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ  किन्तु चोट से ही दर्द और दर्द से दिल और दिल से जिन्दापन आता हैं | सभी को साधुवाद |

शनिवार, 17 मार्च 2018

हमने उनके दिए जख्मो से दिल को जलाया
ताकि हमें भी नफ़रत हो जाए उनसे
पर दिल तो जला
मगर दिल में बसी तस्वीर उनकी और निखर गयी |