रविवार, 9 फ़रवरी 2020

बिखरे रिश्तें |

बहुत दूर तक खींचा रिश्तो की डोरी पर टूट गई |
कदम उन्होंने बढ़ाये नहीं अब इल्जाम हम पर है ||

जिंदगी की तमाम बंदिशे तेरी लौटा दी हैं |
अब आजाद रूह के साथ हमें अकेले जीना हैं ||

जिंदगी की धूप को हम अपनी छत बना डाले हैं |
अब खुशियों की छाँव में रहना हमें नहीं भाता ||

अश्को के तह में ही अपना आशियाना बना डाले हैं |
अब कोई जख्म हमें अपने दर्द में नहीं डुबा पाता ||

एक दिन बैठकर हर एक अपने को गैर बना डाला |
अब कोई अपना मुझे रिश्तो की कसम नहीं दे पाता ||

जिंदगी की तू आदत सी हो गई थी |
धड़कते दिल की जैसे जरूरत सी हो गई थी ||

लेकिन दिल को बेवकूफ बनाना सीख लिए है |
उसे अब तेरी कमी का अंदाजा नहीं हो पाता ||
..........................अमर जुबानी.............................

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