ज़िन्दगी उलझ कर रहा गयी चंद सिक्कों मे, खाब जो देखे थे उनको अब भूल गया |
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शुक्रवार, 14 जून 2019
बुधवार, 12 जून 2019
सोमवार, 10 जून 2019
गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019
शुक्रवार, 18 जनवरी 2019
2.5 करोड़ सरकारी नौकर और इससे भी ज्यादा निजी संस्थाओ के नौकर और आने वाली पीढ़ी और नौजवानो का सपना बस नौकर नौकर. सवाल बस यही क्या नौकर कभी मालिक की बराबरी कर सकता हैं नहीं तो फिर देश की आर्थिक असमानता को दूर करने की बातें क्यों होती हैं | क्यूँ हम छोटे से मकान को हवेली में तब्दील करने का खाब बुनते हैं क्यूँ हम अपनी छोटी सी जिंदगी को बीएमडब्लू में सवार होना देखते हैं हमको पता होना चाहिए कि नौकरी इन्शान को जिन्दा मशीन और जानवर जिसमे कुछ सोचने की ताकत ना हो से ज्यादा कुछ नहीं बना सकती अंग्रेजो की देन ये कम्पनिया सिर्फ इन्शानो की जिंदगियां निगलती हैं | उद्योगपति जो इन्शानो के साथ साथ सरकारों को भी खरीदतीं हैं और स्वनिर्मित कानूनों और नियम बनाकर स्वैच्छाओं के लिए शोषण का कारखाना चलाते हैं |नए भारत की बस यही सच्चाई हैं की युवाबल बलहीन होकर बैशाखी की तलाश में रहते हैं कि हम भी खड़े हो जाएँ पर ये खड़े होने की कीमत क्या चूका रहे हैं ये भविष्य का भारत बताएगा क्योंकि कम्पनिया सिर्फ युवा बल को ही नहीं खत्म कर रही हैं बल्कि ये पहले हमको नौकर बनाते हैं बचपन से जो सीखे हो गलत के खिलाफ खड़े हो जाओ उस भावना को खत्म करती हैं जो भाई नौकरी कर रहे हैं उनको पता होगा आपके साथ डिपार्टमेंट के अंदर ही कितनी पोलटिक्स खेली जाती हैं दोस्त दोस्त में ही कम्पटीशन हो जाता हैं आगे निकलने की चाहत में जो गन्दी राजनीति नेतावो में भी नहीं होगी वो राजनीति का जन्म यहाँ हो जाता एक दोस्त अपनी महत्त्वकांछाओ की पूर्ती के लिए चाटुकारिता से समझौता करता हैं यही से जन्म होता है उस जानवर का जो जानवर को भी इन्शानो कि श्रेणी से ऊपर रखता हैं और तभी ये कहावत चरिर्तार्थ होती हैं कि कुत्ता पाल लो पर इंसान नहीं | फिर हां में हाँ मिलाने वाले नौकरो की तररकी और अपनी शिक्षा संस्कार स्वाभिमान लिए नौजवान इस कंपनी से उस कंपनी धक्के खाता घूमता हैं कभी यहां से निकाला जाता कभी वहां से ये कहकर कि काम तो अच्छा करता हैं पर इसका ऐटिटूड सही नहीं हैं वो ज्यादा जरूरी हैं अर्थात इनको ऐसे बन्दों की जरूरत होती हैं जो कैसा भी हो पर उसमे वो अपना वजूद पूरी तरह से गुलाम रख सके | फिर जो सच्चा गुलाम होता हैं ऐसा ब्यक्ति जो इनके कहने पर किसी का भी खून पी सकता हो अपने साथी इम्प्लॉई अपने माँ बाप अपनी बीबी अपने बेटे की वो इनका खासम खाश अर्थात मैनेजर होता हैं | फिर इन कम्पनी वालो के द्वारा डोज देकर तैयार किया गया मैनेजर रुपी जानवर फिर चालू करता हैं | अन्य एम्प्लाइज का शोषण ये भूलने वाली बात नहीं हैं साथ साथ उसका परिवार माँ बाप बीबी व बच्चे भी शोषित होते हैं और इस शोषण के कारखाने जो ज्यादा उछल कूद करते हैं वो पहले ही बाहर का रास्ता दिखा दिए जाते हैं पर कुछ बीच वाले होते है कभी नाराज होते हैं तो वो फिर बहला फुसला लिए जाते हैं वो एम्प्लोयी कुछ उनसे थोड़ा ऊपर वाले होते हैं और कुछ होते जो गलत भी नहीं होते सही भी नहीं होते वो जब से लगा दिए जाते हैं तब से एक ही काम पकडे रहकर अपनी जिंदगी बिता देते हैं ये लोग काफी पुराने हो जाने के बाद भी अपना हक़ नहीं रख पाते असल में इनमे ज्यादा सोचने कर गुजरने की क्षमता ही नहीं होती | अभी ये कुछ भी नहीं फिर एक साधारण एम्प्लोयी में भी ललक जगती हैं इन बड़े स्टेटस वाले लोगो का जीवन देखकर और वो भी अपने 15000 की सैलरी में कपडे खरीदता हैं शॉपिंग मॉल से कंपनी के अंदर ऐसी संस्कृति पनपती हैं जो विदेशी नंगेपन बालीबुड के नेहा कक्कर, बादशाह,यो यो कि लोकप्रियता बढ़ाती हैं स्मार्ट फ़ोन में लड़की आँख मारे धुन गूंजती रहती हैं गांव घर की साड़ी शिक्षा संस्कार इस आँख मारे में समाहित हो जाती हैं और कुछ मोटी सैलरी वालो का किस्तों में अपना एक फ्लैट एक ऐसी ही कर्ज में डूबी गाडी और अपनी चमचमाती पर गिरवी रखी एक जिंदगी होती हैं इन्शुरन्स हेल्थ प्लान लाइफ प्लान फिर भी हॉस्पिटल चूस पूरा लेता हैं इन सबके अलावा वीकेंड हप्तो में कभी कभार कंपनी से शायद हट के देख पाते हैं फिर वाही जिंदगी चालू और कुछ ऊब भी गए तो चाहकर भी नौकरी से मुक्ति नहीं पाते क्योंकि नौकरी छोड़ देंगे तो फिर ये फ्लैट की क़िस्त गाडी की क़िस्त बच्चे की फीस कौन भरेगा ये नहीं हुवा तो साधारण एम्प्लोयी जो 10 हजार बचाकर घर भेज देतें हैं वो कैसे होगा | इन्शान कुल मिलाके वो पतंगा होता हैं जो कंपनी के मकड़जाल में ऐसे फंसता हैं कि निकलना मुमकिन नहीं हो पाता ये कम्पनिया जवानी खत्म कर रही हैं संस्कृति खत्म कर रही हैं पूरे भारत जा सत्यानाश कर रही हैं शर्म जो किसी औरत का गहना माना जाता रहा हैं उसको बेशर्मी की खाल पहना दिए हैं नारी सशक्तिकरण की बाते कहकर नारी को पतित कर दिए हैं दोस्तों ये कम्पनी के जिंदगी की बहोत छोटी सी बातें हैं कंपनी ये 15, 25, 35, 50 हजार देकर हमारा क्या नाश कर रही हैं ये आप नहीं समझोगे लेकिन ये याद रखना वो दिन भी आने वाला हैं जब ये नंगे अंग्रेज ही एक दिन बोलेंगे कि इन नंगे भारतीयो में संस्कार नाम की चीज नहीं हैं और आपका बेटा नाती या पनाती ये नहीं समझ पायेगा कि ये संस्कार होता क्या हैं वो ये नहीं समझ पायेगा कि गर्लफ्रेंड के अलावा भी भारत में रिस्तें होते थे वो ये तक नहीं समझ पायेगा कि बहन भाई का कितना पवित्र रिस्ता होता हैं और इसके सीधे से जिम्मेदार हम होंगे ना की वो |
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