दुखद....आंसू आ गए देख के... क्या इंसान स्वयं के जान को ही जिंदगी समझता है ...दिमाग हो न हो पर दिल तो हर जीवो में होता हैं जो ईस्वर का ठिकाना होता है उसे रुलाकर हम कौन सी ख़ुशी पाएंगे क़यामत इसीलिये फिर किसी पर रहम नहीं करती |
कितने कलेजे चीर देते हैं आसानी से हंसकर |
इंसान तेरी फितरत भी शैतान से काम नहीं ||
कितने कलेजे चीर देते हैं आसानी से हंसकर |
इंसान तेरी फितरत भी शैतान से काम नहीं ||
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें