शनिवार, 2 दिसंबर 2017

दुखद....आंसू आ गए देख के... क्या इंसान स्वयं के जान को ही जिंदगी समझता है ...दिमाग हो न हो पर दिल तो हर जीवो में होता हैं  जो ईस्वर का ठिकाना होता है उसे रुलाकर हम कौन सी ख़ुशी पाएंगे क़यामत इसीलिये फिर किसी पर रहम नहीं करती |

कितने कलेजे चीर देते हैं आसानी से हंसकर |
इंसान तेरी फितरत भी शैतान से काम नहीं ||

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