शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

जिंदगी की बेवफाई

हमने जिंदगी को ही सब कुछ माना |
पर ये भी वक्त की गुलाम निकली ||

आंसुओ की दरिया में बैठी जिंदगी  |
टटोला तो जख्मों से घायल मिली ||

कयामत के कहर से हर पल बचाता रहा इसे |
पर ये तो मौत की ही दीवानी निकली ||

हमसे कोई रंजिश तो नहीं थी |
फिर हमें तू क्यूँ मिली जिंदगी |

यूं फूल बनकर जो कांटो से चुभाना था |
तो बहार बनकर क्यूँ बिखरी जिंदगी ||

हमने तो तुझे रब से पहले जाना जिंदगी |
पर साथ तेरा गैर से भी बदत्तर रहा जिंदगी |
.....................अमर जुबानी..........................

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

संघर्ष और बुलंदी |

संघर्षो का सीना चीर के जो बुलंदी छुआ करते हैं
आखिर में वही जिंदगी जिया करते हैं |
चंद साँसों का चलना ही जीवन नहीं होता
संघर्ष विहीन जीवन का उत्थान नहीं होता |
हसरतो का  बिखरना जायज है
खाबो का टूटना जायज है
और जो उठा है उसका गिरना भी जायज है
पर बिना प्रयास ही मिले सफलता
ये कहा जायज हैं |
कठोर माटी का सीना चीर कर जो स्फुटित हो जाते हैं
फिर वही विशाल बृक्ष बनकर जगत में पहचान पातें हैं
बस यही सिद्धांत हैं इस लौकिक जगत का
जो टूट जाने पर भी अपनी पहचान नहीं भूला करते
वो एक दिन फिर स्फुटित हो जाया करते हैं |

त्याज्य माया, रख दिल में राम की माला ||

तृष्णा मन की बड़ी दुलारी चख चख माया उपजी है
जीव भॅवर में फंसता फिर रोता, नख नख माया खुरेदी है ||
ईश सलोना अंतर्मन में बैठा
पर गुर्राता हंकार उसे छुपाया है |
पथिक बने हर प्राणी को भइया
दुनिया की रौनक ने भरमाया है ||
अलबेली सी ये जिंदगी सुहानी
फुर्र फुर्र चिड़िया सी एक दिन उड़ जाएगी
जप ना सका जो राम की माला तो माया भी झर्र हो जाएगी ||
पढ़ ले साथी साँच की विद्या, ये  झूठ कछु काम ना आएगा
समेट ले मनवा असली कमाई, नहीं बिलख बिलख फिर रोयेगा |
...............................जय श्री राम.......................................

मंगलवार, 26 नवंबर 2019

हिंदी कविता : आतंकवाद

............................आतंकवाद.................................
आज समस्या बनी देश की देखो आतंकवाद है |
कह नहीं सकता कोई प्राणी कि मेरा जीवन आजाद है ||

जाति पाँति से कोई न मतलब सबको करता बर्बाद है |
समझ नहीं आता भइया यह कैसा आतंकवाद है ||

आतंकवाद है बड़ा निराला जिसको जाने सकल जहान |
आज अछूता रहा ना कोई जितने देश रहे बलवान ||

जल्दी सम्भलो मेरे भइया नहीं बाद में फिर पछताना है |
जिसकी गोदी में जन्म लिया हमें उसी के हित में जाना है ||
..................................................................................
धन्यवाद
Amrendra


रविवार, 24 नवंबर 2019

खाब और हक़ीक़त में कभी फासला ना हो |
जीवन में खुशियों का कभी खातमा ना हो |
हर उस गली में बहारे बिखरे जिसमे आप निकलो |
रातें भी ठहरें अगर तो उजाला आपका कम ना हो |

गुरुवार, 21 नवंबर 2019

हिंदी कविता - धर्म और इंसानियत |

जब खुदा ने तुझे भी मिटटी से बनाया |
और मुझे भी उसी मिटटी से बनाया |
और कयामत के बाद इसी मिटटी और ख़ाक में मिलाया |
जब तेरे अंदर दिल और मेरे अंदर भी दिल बनाया |
तो कैसे कह दूँ मैं कि खुदा ने तुझे हिन्दू
और मुझे मुसलमा बनाया |


जब तेरे भी जजबात रो पड़ते है |
मेरे भी आँसू पिघलकर बहने लगते है ||
जब तेरे अंतर्मन की वही ब्याख्या
जो मेरे अंतर्मन की है ब्याख्या |
तो फिर कैसे कह दूँ मैं कि खुदा ने तुझे हिन्दू
और मुझे मुसलमा बनाया |

जब तुझे इसी सूर्य की रौशनी रौशन करती |
मुझे भी इसी गगन की गर्मी से तपिस मिलती |
जब तुझे भी इसी कुदरत की गोदी में जगह मिलती
और मुझे भी इसी प्रकति की छावं में ठंडक मिलती |
तो दोस्त खुदा ने हम दोनों में कहाँ फर्क बनाया |

हर एक नजरिये से देखा तुझको
 हर एक नजरिये से खोजा खुद को |
जमीं से लेकर आसमां तक दोनों को सामान पाया |
तो कैसे कह दूँ मैं कि खुदा ने तुझे हिन्दू
और मुझे मुसलमा बनाया

नफरत की कालिमा से झुलस गए है |
मोहब्बत की बारिश से महरूम हो गए है |
आज शख्शियत हमारी शैतान के कब्जे में रहती हैं |
पर जुबाँ की ये जुर्रत देखो खुद को खुदा का बंदा कहती है |

और खुदा ने तुझे कायनात में लाकर |
जब अपनी जिंदगी का एक हिस्सा बनाया |
और मुझे भी अपने चमन का एक फूल बनाया |
तो कैसे कह दूँ मैं कि खुदा ने तुझे हिन्दू
और मुझे मुसलमा बनाया |

तू है जिस मालिक का बंदा मैं भी उसी मालिक का बंदा
और यकीन मान खुदा ने नहीं इस दुनिया ने तुझे हिन्दू
और मुझे मुसलमा बनाया |
खुदा ने तो हम दोनों को सिर्फ इंसान बनाया |

||आपका दोस्त व हितैषी अमर जुबानी ||