पलको के घूँट पीकर मुस्कुराना ही जिंदगी है ।
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गुरुवार, 27 जनवरी 2022
सोमवार, 4 मई 2020
इंसानी जज्बा |
सितारों में तलाशूँ तो जिंदगी वहीं नजर आती है |
बहारो को देखूँ तो साँसे वहीं सुकून पाती हैं ||
हैरत नहीं मुझे कि आसमां में भी आशियाना हो सकता है |
ये जूनून हैं जनाब खाबों का भी जिन्दा वजूद हो सकता है ||
बेचैनी जब होती है दिल में तो वजूद खुदा का भी हिल जाता है |
सच मानो मुसाफिर है गर सच्चा तो आसमां भी पैरों तले आ जाता है ||
बहारो को देखूँ तो साँसे वहीं सुकून पाती हैं ||
हैरत नहीं मुझे कि आसमां में भी आशियाना हो सकता है |
ये जूनून हैं जनाब खाबों का भी जिन्दा वजूद हो सकता है ||
बेचैनी जब होती है दिल में तो वजूद खुदा का भी हिल जाता है |
सच मानो मुसाफिर है गर सच्चा तो आसमां भी पैरों तले आ जाता है ||
रविवार, 19 अप्रैल 2020
मधुशाला राम से बढ़कर ! मेरा विरोध |
बता देंगे अगर मय को मधु
तो मधु की परिभाषा क्या होगी ||
ठहरा देंगे जो कातिल को सही |
तो गुनाह की परिभाषा क्या होगी ||
गुरूर तो है मुझे कभी मधुशाला नहीं लिखा |
बड़ी से बड़ी मजबूरी को वैश्यालय नहीं लिखा ||
गम में जाम मिलाने को सादगी नहीं कहते |
जो हार जाए स्वयं से उसे बहादुरी नहीं कहते ||
जीवन तो है ही आंसुओं की धारा |
सुलगती रेत में उम्मीदों की प्याला |
मगर पथविहीन हो जाये नर अगर
तो उसे कभी राही नहीं लिखा |
फक्र है कलम पर दिल के घूँट को
मदिरा की प्याली नहीं लिखा ||
......................अमरेंद्र.......................
मधु का मतलब शहद या मीठा होता है लेकिन इसका दूसरा मतलब शराब से भी लगाते है क्योंकि कभी शराब शहद से ही बनाई जाती थी पर इसका अर्थ ये नहीं कि उसे मधु का नाम दे दिया जाए इसलिए मधु का अर्थ शराब लगाना मेरे नजरिये से गलत है |हालांकि कहा जाता है बच्चन साहब ने शराब को कभी हाथ नहीं लगाया | लेकिन गुनाह ना करने से ज्यादा गलत गुनाह पैदा करना है |
तो मधु की परिभाषा क्या होगी ||
ठहरा देंगे जो कातिल को सही |
तो गुनाह की परिभाषा क्या होगी ||
गुरूर तो है मुझे कभी मधुशाला नहीं लिखा |
बड़ी से बड़ी मजबूरी को वैश्यालय नहीं लिखा ||
गम में जाम मिलाने को सादगी नहीं कहते |
जो हार जाए स्वयं से उसे बहादुरी नहीं कहते ||
जीवन तो है ही आंसुओं की धारा |
सुलगती रेत में उम्मीदों की प्याला |
मगर पथविहीन हो जाये नर अगर
तो उसे कभी राही नहीं लिखा |
फक्र है कलम पर दिल के घूँट को
मदिरा की प्याली नहीं लिखा ||
......................अमरेंद्र.......................
मधु का मतलब शहद या मीठा होता है लेकिन इसका दूसरा मतलब शराब से भी लगाते है क्योंकि कभी शराब शहद से ही बनाई जाती थी पर इसका अर्थ ये नहीं कि उसे मधु का नाम दे दिया जाए इसलिए मधु का अर्थ शराब लगाना मेरे नजरिये से गलत है |हालांकि कहा जाता है बच्चन साहब ने शराब को कभी हाथ नहीं लगाया | लेकिन गुनाह ना करने से ज्यादा गलत गुनाह पैदा करना है |
गुरुवार, 16 अप्रैल 2020
शनिवार, 4 अप्रैल 2020
प्रेयसी की विदीर्ण व्यथा
कुंतल बिखरा जीवन उलझा
श्रृंगार तन का उजड़ा उजड़ा |
मधुमय जीवन जहर लगे अब
रस्ता उसका जैसे ठहरा ठहरा |
आश बंधा झकझोर रहा तन को
वरना जीवन अब निर्जीव पड़ा |
घननाद कर गरज रही मृत्यू
बस विरह वेग से है प्राण रुका |
प्रेयसी की विदीर्ण व्यथा
नभमंडल बन बरस रहा |
स्मृति पटल पर बीता कल
विह्वल होकर छलक रहा |
पात पात में बूँद पड़े जो
शूल उगे मन में उतना |
घटा लपेटे सावन रोवे |
पल पल में भर जावें नयना |
हृदयाग्नि बन धधक रही तड़पन
चक्षु द्वार अश्रु धार में बहा हुआ |
शंकाओं से मन कम्पित होवै
अँधियारो से दिन घिरा हुआ
सन्नाटों से सिसक रहीं राते
उलझ उलझ कर दिन गुजरे |
घर आवेंगे प्रियतम एक दिन
बस सोच सोचकर मास कटे ||
दुखी पड़ी प्रियतम से वह
पर प्रेम गाँठ मजबूत बंधी |
प्राप्त करें प्रियतम सम्पूर्ण मुझे
अतः मृत्यु को भी दूर रखी
होकर विकल फिर वायुदूत
करुण दशा रो रोकर पहुँचावें |
प्रेयसी की सकुच, दीन दशा भर उर
लिपट लिपट कर प्रतीत करावें |
अकारण सुलग पड़ी वेदना प्रियतम मन में
रो रही प्रियतमा जैसे ब्याकुल दीन दशा में |
भूल हुई मुझसे जो प्रेम दूर किया निज से
करने लगा याद रख ध्यान चित प्रेयसी में |
दूर नहीं कर्तब्य विमुख नहीं हुआ मै
एकमात्र वही श्रेष्ठतम, गुनी बसी हृदय में |
फिर भी निष्ठुर हो गया मन अज्ञानता में
बाकी वही जीवन में और वही मृत्यू में ||
अनुभव सत्य का करके मन
खिन्न हुआ और विदीर्ण हुआ |
अपराधी घोषित कर स्वयम को फिर
चल पड़ा प्रेयसी के मार्ग में होकर नित |
हो गया फिर पूर्ण मिलन
जैसे प्रकृति का ईश्वर से |
करके गान मंगल पुण्य बिखरा
आज फिर प्रेयसी के आँगन में
मर्यादा में समेट दिया जीवन अपना
कर्तव्य परायण, धर्मी, दृढ़ निश्चयी बनकर |
करके प्रेम शाश्वत बनी देवी धनी हुई वह
अपने प्रियतम की एक प्रियतमा होकर |
प्रेयसी का ये प्रेम अगूढ़ा
लिखकर कलम पुलकित होवें |
है प्रेम अमर नश्वर जीवन में
समझकर मन ये गदगद होवै |
श्रृंगार तन का उजड़ा उजड़ा |
मधुमय जीवन जहर लगे अब
रस्ता उसका जैसे ठहरा ठहरा |
आश बंधा झकझोर रहा तन को
वरना जीवन अब निर्जीव पड़ा |
घननाद कर गरज रही मृत्यू
बस विरह वेग से है प्राण रुका |
प्रेयसी की विदीर्ण व्यथा
नभमंडल बन बरस रहा |
स्मृति पटल पर बीता कल
विह्वल होकर छलक रहा |
पात पात में बूँद पड़े जो
शूल उगे मन में उतना |
घटा लपेटे सावन रोवे |
पल पल में भर जावें नयना |
हृदयाग्नि बन धधक रही तड़पन
चक्षु द्वार अश्रु धार में बहा हुआ |
शंकाओं से मन कम्पित होवै
अँधियारो से दिन घिरा हुआ
सन्नाटों से सिसक रहीं राते
उलझ उलझ कर दिन गुजरे |
घर आवेंगे प्रियतम एक दिन
बस सोच सोचकर मास कटे ||
दुखी पड़ी प्रियतम से वह
पर प्रेम गाँठ मजबूत बंधी |
प्राप्त करें प्रियतम सम्पूर्ण मुझे
अतः मृत्यु को भी दूर रखी
होकर विकल फिर वायुदूत
करुण दशा रो रोकर पहुँचावें |
प्रेयसी की सकुच, दीन दशा भर उर
लिपट लिपट कर प्रतीत करावें |
अकारण सुलग पड़ी वेदना प्रियतम मन में
रो रही प्रियतमा जैसे ब्याकुल दीन दशा में |
भूल हुई मुझसे जो प्रेम दूर किया निज से
करने लगा याद रख ध्यान चित प्रेयसी में |
दूर नहीं कर्तब्य विमुख नहीं हुआ मै
एकमात्र वही श्रेष्ठतम, गुनी बसी हृदय में |
फिर भी निष्ठुर हो गया मन अज्ञानता में
बाकी वही जीवन में और वही मृत्यू में ||
अनुभव सत्य का करके मन
खिन्न हुआ और विदीर्ण हुआ |
अपराधी घोषित कर स्वयम को फिर
चल पड़ा प्रेयसी के मार्ग में होकर नित |
हो गया फिर पूर्ण मिलन
जैसे प्रकृति का ईश्वर से |
करके गान मंगल पुण्य बिखरा
आज फिर प्रेयसी के आँगन में
मर्यादा में समेट दिया जीवन अपना
कर्तव्य परायण, धर्मी, दृढ़ निश्चयी बनकर |
करके प्रेम शाश्वत बनी देवी धनी हुई वह
अपने प्रियतम की एक प्रियतमा होकर |
प्रेयसी का ये प्रेम अगूढ़ा
लिखकर कलम पुलकित होवें |
है प्रेम अमर नश्वर जीवन में
समझकर मन ये गदगद होवै |
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